Sunday, February 7, 2021

मुझे याद है सब ज़रा ज़रा

 



मुझे याद है सब ज़रा ज़रा

हमारे घर में जब बाहर से औरतें आती, अम्मी बेटों को कहती हैं :-" तुम उधर जाकर बैठो यहां औरतें बैठेंगी "
जिस कमरे में बहनें सोई हुई हों, भईयों को इजाज़त नहीं होती थी के बेधड़क वहां घुस जाएं,
अगर रास्ते में किसी औरत को मदद चाहिए तो मां कहती के बेटा जाओ " तुम्हारी मां जैसी है उसकी मदद करो" बेटा मां ही समझ कर ऐसा करता
किसी की जवान बेटी को कोई काम होता तो अम्मी यूं कहती " जाओ तुम्हारी बहन जैसी है बिल्कुल उसके जितनी ही है, फलां काम कर दो, या वहां छोड़ आओ "
बेटे के दिल में बैठ जाता के "मेरी भी इतनी ही बहन है ऐसी ही बहन है, ये भी मेरी बहन जैसी है "
बहनों को सहेलियां घर आती तो उसका बहनों की तरह ही एहतेराम किया जाता, मंगनियां हो जाती थी बेटों को पता तक ना होता था,
ये तरबियत होती थी, ये हमारा मुआशरा था जो माओ ने तश्कील दिया था,
अब तो लगता है, नई नसलो की माएं रोटी और सालन में कहीं खो गईं हैं, वह तरबियत करना भूल गई है,
तीन फितरी कानून जो कड़वे लेकिन हक हैं,
पहला कानून ए फितरत :
अगर खेत में दाना ना डाला जाए तो कुदरत उसे घास फूस से भर देती है,
इसी तरह अगर दिमाग़ को " अच्छी फिक्रों " से ना भरा जाए तो " कज़ फिक्री" उसे अपना मस्कन बना लेती है, यानी उसे सिर्फ उल्टे सीधे खयालात आते हैं और वह शैतान का घर बन जाता है,
दूसरा कानून ए फितरत:
जिसके पास जो कुछ होता है वह वहीं कुछ बांटता है,
खुश मिजाज़ इन्सान खुशियां बांटता है,
ग़मजदा इन्सान ग़म बांटता है,
आलिम इल्म बांटता है,
दीनदार इन्सान दीन बांटता है,
खौफजदा इंसान खौफ बांटता है,
तीसरा कानून ए फितरत :
आपको ज़िन्दगी में जो कुछ भी हासिल हुआ उसे हज़म करना सीखें इसलिए के,
खाना हज़म ना होने पर बीमारियां पैदा होती है,
माल वा शोहरत हज़म ना होने की सूरत में रियाकारी बड़ती है,
बात ना हज़म होने पर चुगली और गीबत बड़ती है,
तारीफ हज़म ना होने की सूरत में गुरूर में इजाफा होता है,
मुजम्मत के हज़म ना होने की वजह से दुश्मनी बड़ती है,
इक्तेदार और ताकत हज़म ना होने की सूरत में खतरात में इजाफा होता है,
अपनी ज़िन्दगी को आसान बनाएं और एक बामकसद और बा अखलाक ज़िन्दगी गुजारें, लोगों के लिए आसानिया पैदा करें,
खुश रहें, खुशियां बांटे
मनकूल
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi