Sunday, April 4, 2021

मैं बीवी हूं




 मैं बीवी हूं इसलिए मैंने अपनी ज़िद, अना बल्कि इज्ज़त नफस तक खो दी है क्यूंकि मैं घर बसाना चाहती हूं,


मैं जब बेटी थी ना तो बहुत ज़िद्दी थी,

इंतेहा की अनापरस्त अपने किसी दोस्त से नाराज़ होती तो दोबारा आंख उठाकर ना देखती जब तक उसकी तरफ से मना ना लिया जाता और जब तक मेरा गुस्सा खतम ना हो जाता ,

पापा से रूठ जाती थी, पापा का दिल बैठ जाता था,

पापा पता नहीं किन किन तरीकों से मनाते थे, मेरी पसंद की चीज़ें लाकर देते थे, कभी चॉकलेट, कभी केक कभी मेरे पसंद के कपड़े ,

अम्मी से रूठ जाती थी तो अम्मी पीछे पीछे फिरा करती, खाना खा लो मेरी बेटी ! खाना खा लो,

लेकिन अब मैं बीवी हूं !!

मैंने अपनी ज़िद, अना बल्कि इज्ज़त नफस तक खो दी है क्यूंकि मैं घर बसाना चाहती हूं,

मैं सब काम करती हूं और जब थक हार कर बैठ जाती हूं तो बात बे बात मेरी बे इज्जती की जाती है, मुझसे बिना वजह नाराज़ हुआ जाता है,

मैं सुबह से शाम तक बीमारी में कुछ भी ना खाऊं तो कोई नहीं पूछता के तुमने आज कुछ खाया ?? कुछ खाओगी ??

मैं मायके मिलने जाने की बात करूं तो सबके मुंह बन जाते हैं, मै जब थक टूट कर रात को बिस्तर पर लेटती हूं तो मां तुम याद आती हो !!

हमारे मुआशरे में हर पांच में से चार औरतों की ये कहानी है.. बराए महरबानी अपने घर में नज़र दौड़ाएं ,कहीं हम अनजाने में खुशियों की बजाए ग़म तो नहीं बांट रहे ??

बेटियों का एहसास करें, अपनी हों या गैर हों,

RabbatUlBait
साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks