Monday, June 21, 2021

बदसूरत औरत नेक सीरती की वजह से मर्द की जन्नत बन गई,

 



बदसूरत औरत नेक सीरती की वजह से मर्द की जन्नत बन गई,


मेरी उमर पच्चीस साल थी जब मैं अमेरिका आया , यहां आए हुए पंद्रह साल हो गए थे अच्छे वह दिन थे जब कानूनी वीजा न होने के बावजूद जॉब मिल जाती थी, ग्रीन कार्ड के लिए पेपर मैरिज का आम रिवाज था अमेरिकी औरतें डॉलर्स के लालच में कुछ मुद्दत तक कागजों में बीवी होती थी और ग्रीन कार्ड मिलते ही तलाक हो जाती, मगर कई बदनीयत औरतें तलाक से मुकर जाती, नौबत झगड़े तक पहुंची तो ग्रीन कार्ड मंसूख करवाने का कह कर ब्लैकमेल करतीं, बच्चे पैदा करतीं,शौहर की कमाई पर ऐश करतीं और उनकी गर्दन का तौक बन जाती,

इस किस्म के वाकयात ने मुझे खौफजदा कर रखा था , वैसे भी जाली शादी से अल्लाह का खौफ लाहक था जमीर वाला इंसान बड़ा ख्वार होता है, जुमा की नमाज के लिए मस्जिद चला जाता,

एक रोज इमाम ए मस्जिद जिसका ताल्लुक मिस्र से था अपना मुद्दा बयान किया तो इन्होंने किसी अमेरिकी मुसलमान औरत से हकीकी शादी करने का मशवरा दिया और बताया कई औरतें इस्लाम कुबूल करती हैं और उन्हें शादी के लिए मसाइल दरपेश होते हैं, इस्लाम कुबूल करने वाली औरतों में सियाह फाम कौम की अक्सरियत है, उन्होंने मुझे एक सियाह फाम औरत का रिश्ता बताया जिसे कुबूल ए इस्लाम की सजा में ईसाई मां बाप ने घर से निकाल दिया और वह मस्जिद के करीब किसी मुसलमान फैमिली के घर एक किराए के कमरे में मुकीम है और इस्लामी स्कूल में जॉब करने लगी है अगर तुम उसे सहारा दे दो तो अल्लाह भी राज़ी होगा और तुम्हारी रिहाइश कानूनी भी हो जायेगी,

मैंने उस औरत को देखने की ख्वाहिश जाहिर की ,इमाम साहब ने कहा मगरिब की नमाज के बाद आ जाना मैं उससे तुम्हारी मुलाकात करवा दूंगा , तमाम रात सोचता रहा कि अगर सियाह फाम औरत से शादी करली तो खानदान वाले जलील कर देंगे के तुम्हे अमेरिका में कोई गोरी लड़की नहीं मिली थी, काली ही करना थी तो हिंदुस्तान में क्या कमी थी जैसे जुमले कानों में गूंजने लगे , खाला की लड़की का कद छोटा होने की वजह से रिश्ता का इंकार कर दिया था , अब कोई जीने नहीं देगा , नफ्स ने परेशान और अमेरिकी कानून ने सूली पर लटका दिया ,

दूसरे रोज नमाज़ ए मगरिब के बाद इमाम साहब मस्जिद से लगे बावर्ची खाने में ले गए जहां वो औरत मेज़ पर बैठी हमारा इंतजार कर रही थी, उसने सियाह बुरका पहन रखा था , इमाम साहब ने तारूफ करवाते हुए कहा ये सिस्टर सफिया हैं, सलाम के बाद उसने नकाब उठाया तो मेरा दिल धड़ाम से सीने से बाहर आने को था अगर मैं कुर्सी को ना थाम लेता , दुबली पतली निहायत सियाह और कुबूल ए सूरत कहना भी दुरुस्त न होगा , अल्लाह की तखलीक थी लिहाजा कोई बुरी बात भी मुंह से नहीं निकाल सकता था , चंद मिनट की दुआ सलाम के बाद लड़खड़ाते कदमों से घर आ गया ,

हम हिन्दुस्तानी मर्दों को रंगत का एहसास कमतरी क्या कम है जो सूरत भी भली ना मिले , खाला की लड़की हूर लगने लगी, अल्लाह ने मुझे अच्छे कद वा कामद और सूरत से नवाज रखा था , दिल और दिमाग़ की जंग में आखिर जीत दिमाग की हुई, सोचा घर वालों से खुफिया शादी कर लूं ग्रीन कार्ड हासिल करते ही तलाक दे दूंगा , उन दिनों ग्रीन कार्ड एक साल के दौरान मिल जाता था ,

इमाम साहब से हां कर दी और यूं एक हफ्ता बाद जुमा के दिन हमारा निकाह कर दिया गया , मैं साफिया को लेकर अपने फ्लैट में आ गया , दिल पर जबर करके शब वा रोज गुजरते गए , सफिया को मेरी सर्द मोहरी का अंदाजा हो गया था मगर उसने हर्फ शिकायत ना कहा , हम दोनो अपनी जॉब पर चले जाते और शाम को लौटते,

वह अमेरिकी तर्ज का खाना पकाती , मेरे सामने मेज़ पर सजाती, घर में तमाम काम करती , उसके होंटों की जुंबिश से जिक्र ए इलाही की महक आती रहती, कोई फिजूल बात या बहस न करती ,मेरे उखड़े लहज़े पर खामोश रहती,

नमाज़, पर्दा, कुरआन, मेरी खिदमत, खामोशी ,सब्र वा शुक्र इन सब को देखकर मेरा दिल घबरा जाता था, सूरत के इलावा और कोई बुराई हो तो मैं उसे तंग कर सकूं जो कल को तलाक का सबब बन सके , मगर कुछ ऐसी बात हाथ न लग सकीं, मुझे उससे मुहब्बत न हो सकी,हां अलबत्ता खुद पर गुस्सा आने लगा के मैंने एक नेक सीरत औरत को धोका दिया है, शादी के चार महीने बाद मेरी जॉब चली गई,नई जॉब के लिए कोशिश शुरू कर दी और उसमे दो महीने का वक्त बीत गया , इस दौरान सफीया अकेली कमाने वाली थी, मुझ बेरोजगार को घर बैठा कर खिलाती थी, महनत करती और मुझे भी हौसला देती, एक मैं था की शर्मिंदगी से उसे किसी दोस्त के यहां दावत पर ले जाने से कतराता था,

उन्ही दिनों एक करीबी दोस्त का बीवी से झगड़ा चल रहा था और नौबत तलाक तक पहुंच गई, उसकी बीवी खूबसूरत थी मगर मगरूर और बदज़बान , मेहमानों के सामने शौहर को जलील करती, उसकी बदौलत दोस्त को ग्रीन कार्ड मिला था , नखरों का ये आलम के मेहमानों के सामने टांग पर टांग रखे अपने शौहर की तरफ देखकर कहती,

" ये जानते हैं मैं किस किस्म के माहौल से आई हूं ? "

यानी अपने मायके की इमारत का रुआब डालती, वह गरीब जी हुजूरी में घर बचाता था , दोस्त को समझाने गया तो बोला

" यार ! घर औरत बनाती है और बचाती है जिस घर की बुनियाद लालच पर हो उसे लाख सहारा दो दीवारें गिर जाती हैं,ग्रीन कार्ड जहन्नुम बन गया है मेरे लिए ,मेरे ससुराल वालों को डॉक्टर दामाद चाहिए था , ये लोग भी पाकिस्तान से यहां शिफ्ट हुए हैं और मैं भी, फर्क इतना है की इनके यहां डॉलर बोलते हैं और मैं किराए के घर से ताल्लुक रखता हूं, पाकिस्तान जाना पसंद नहीं करती और कभी चले भी जाएं तो जाते ही गाड़ी का तकाजा करती है जबकि मेरे भाई के पास मोटर साइकिल है और मुझे टैक्सी पर हर जगह जाना पड़ता है"

" हिंदुस्तान में हो या अमेरिका में इस औरत ने मुझे जलील कर दिया है, डॉक्टर की बेगम तो बन गई मगर मेरी बीवी नही बन सकी, यार हम दोनों ने ग्रीन कार्ड के लालच में शादी की है मगर तुम खुशनसीब हो जिसे नेक औरत मिली है, इस्लाम उसकी पसंद है जबकि हमें इस्लाम नापसंद करता है, जमाल और माल़ ने मुझे कहीं का नहीं रखा , तुम कमाल की कद्र करो उसी में जमाल है, भाभी की कद्र करो और मुझे भी माफ कर दो जिसने तेरी शादी पर मजाक उड़ाया था "

दोस्त की हालत ज़ार ने मेरे दिल की शमां रोशन कर दी , जमीर को झिंजोडा और घर जाते ही मैंने पहली बार मुस्कुरा कर साफिया की तरफ देखा , उसने हैरत से अमेरिकी अंदाज में कहा, " जॉब मिल गई?" नहीं तुम मिल गई हो !!

अल्लाह ने हमें एक बेटा दिया , उसकी पैदाइश और ग्रीन कार्ड मिलने के बाद वालीदाइन को असल सूरत ए हाल से आगाह किया , अब ग्रीन कार्ड मिलने की सूरत में हिंदुस्तान आ सकता हूं मगर मैं नहीं हम तीनों, मां बाप को वक्ति दुख हुआ मगर पोते का सुनकर खून से जोश मारा और हमारी आमद के मुंतजिर रहने लगे , जॉब भी मिल चुकी थी एक महीने की छुट्टी पर वतन गए , सफीया ने आदत के मुताबिक बुरका ओढ़ रखा था , दिल्ली से गांव जाने में पांच घंटे लगते हैं, घर पहुंच कर सफिया के साथ वही सुलूक हुआ जिसका मुझे यकीन था , उसे हिंदी नहीं आती थी मगर चेहरों की जबान कौन नहीं जानता , वो सब्र करती रही लेकिन एक लफ्ज़ शिकायत ना कहा ,वालिद ने मेरे वालीमे और पोते के अकीके की ख्वाहिश पूरी की, मां और बहन की बनिस्बत भाई और बाप ने सफिया को कुबूल कर लिया और उसकी सीरत को सराहा ,

मां भी खामोश थी मगर भाभी ने सबके सामने कह दिया," तेरी बीवी को बुरका ओढ़ने की क्या जरूरत है, और इसकी तरफ कौन देखेगा ?? नकाब तो हुस्न छुपाने के लिए ओढ़ते है !!"

इस जुमले के दो रोज बाद हम दिल्ली के हवाई अड्डे पर थे, मैं अपनी बकामाल बीवी को और जहन्नुम में नहीं रख सकता था , हिंदुस्तान में अकसरियत को जमाल वा माल़ की हवस है, लड़की का रिश्ता लेने जाते हैं तो बड़ी मासूमियत से कहते हैं के," हमें कुछ नहीं चाहिए , ना हुस्न और ना दहेज का ही लालच है, बस लड़की नेक और फरमा बरदार हो, "

लड़की देखते ही इरादा बदल जाता है और फिर कभी लौट कर उस घर नहीं जाते , लड़के से ज्यादा लड़के के घरवालों को हुस्न वा माल़ का लालच होता है,

सफिया ने अपनी सीरत से मेरा दिल मोह लिया मगर मेरे घरवालों को कायल ना कर सकी, भाभी जैसी बदजबान को उस घर में मकाम हासिल है मगर सफीया अपनी सूरत की वजह से वहां एक महीने भी खुश ना रह सकी, ग्रीन कार्ड का लालच जहन्नुम भी है और जन्नत भी, मेरे दोस्त के लिए जहन्नुम साबित हुआ और मेरे लिए जन्नत , मगर इस जन्नत को पाने के लिए कुर्बानी तो देनी पड़ती है,

मैंने सूरत पर सीरत को तरजीह देते हुए अपना दीन वा दुनिया बचा लिया ,आज मेरे तीन बच्चे हैं और मां के हमराह इस्लामी स्कूल जाते हैं, बेटियां अपनी मां की सूरत पर हैं,

मैं दुआ करता हूं के , ए अल्लाह ! मेरी बेटियों को मुझ जैसा लालची शौहर मत देना जिसकी निकाह की बुनियाद ग्रीन कार्ड है ना की अल्लाह का खौफ,

( मोमिन औरतों की करामात)

साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks