खुद खाना गर्म कर लो !!!!
लिब्रालिज्म को फॉलो करेंगे तो यही अंजाम होना है,
शादी से पहले :
बेटी: पापा मैं किसी की गुलामी नहीं कर सकती,
बाप: कोई किसी की गुलामी नहीं करता मेरी बच्ची , सब अपने अपने हिस्से का काम करते हैं, जो काम औरतों के लिए मुश्किल होते हैं वह मर्द करते है, और जो मर्द के लिए मुश्किल होते हैं वो औरतें करती हैं, यूंही मिलजुल कर गुज़ारा होता है,
शादी के बाद :
बीवी: मैं खाना गर्म नहीं करूंगी !!
शौहर: तो अपने बाप के घर वापस चली जाओ , मैं तुम्हारी ज़रूरत पूरी करने के लिए सुबह से शाम तक महनत करता हूं और तुम मेरी ज़रूरत पूरी नहीं कर सकती तो ठीक है फिर मुझे भी तुम्हारी ज़रूरत नहीं ,
तलाक के बाद:
( सड़कों पर बैनर उठाए हुए )
खाना खुद गरम कर लो!!
खाना खुद गरम कर लो!!
खाना खुद गरम कर लो!!
खाना खुद गरम कर लो!!
खाना खुद गरम कर लो!!
बाप के मरने के बाद
भाई : देखो मेरी बहन ! मैं अब फ़ैमिली वाला हूं मेरी बीवी तुम्हे और बर्दाश्त नहीं कर सकती, तुम अपना बंदोबस्त कहीं और कर लो,
नौकरी की तलाश में :
दफ्तर वाले : हमारे पास एक फीमेल रिसेप्शनिस्ट की जगह खाली है आप माशा अल्लाह खूबसूरत हैं, आप हमारे यहां काम कर सकती है,
ढलती उमर:
दफ्तर वाले : बीबी ! हम माज़रत ख्वाह हैं आपके काम में अब पहले जैसी बात नहीं रही लिहाज़ा आप कहीं और नौकरी ढूंढ लें , हमें अब आपकी ज़रूरत नहीं रही,
ज़ालिम बुढ़ापा:
नई जगह वाला : मोहतरमा !! आपकी इतनी उमर हो गई है , अब मैं आपको क्या नौकरी दूं , अब आपको आराम से अपने बच्चों की कमाई खानी चाहिए ,
बैनर वाली आंटी: मेरे बच्चे नहीं हैं, कोई नहीं है मेरा,
नए दफ्तर वाला : वाह! चलिए मैं आपके लिए कुछ करता हूं , मेरा 20 लोगों का स्टाफ है, क्या आप उन सबके लिए खाना पका सकती है ?? मैं आपको 6 हज़ार रुपए महीने दूंगा ,
लिबरल आंटी : सिर्फ 6 हज़ार ??
नए दफ्तर वाला : मैं जानता हूं के इन 6 हज़ार में आपकी ज़रूरत पूरी नहीं होती, मगर मैं मजबूर हूं, मेरे पास इससे ज़्यादा की गुंजाइश नहीं है,
बैनर वाली आंटी: ठीक है !! मुझे मंजूर है,
उसके आंखों से आंसू जार जार बह रहे थे, और सोच रही थी के
" काश ! जवानी में ही खाना गरम कर देती "
मंकूल
साभार: Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks.com