Friday, June 4, 2021

मेरे घर के आँगन पर आसमान रहने दो..!!




 फैलते हुए शहरों अपनी वुसअतें रोको ,

मेरे घर के आँगन पर आसमान रहने दो..!!

मुस्लिम कल्चर के मकानों में दो हिस्से काफ़ी कुशादा होते हैं एक आँगन और दूसरे बावर्चीख़ाना।
घर के अंदर से जो खुला आसमान देखने का इंतज़ाम हमारे बुज़ुर्गो ने आँगन की शक्ल में किया था, वो आज शहरी घरों की बदौलत गायब होते जा रहे हैं।

आँगन, जो शाम को पूरे ख़ानदान को यकजा करने की जगह होती थी, बीच मे चारपाइयों पर बुज़ुर्ग बैठते थे और चारो तरफ़ बच्चे शोर मचाते दौड़ते फिरते थे, जिससे घर मे रौनक़ रहती थी।

आँगन, जहाँ नई नवेली दुल्हन के आने पर ख़ानदान की सारी औरतें इकठ्ठा होकर हँसी-ठिठोली करती हुई दुल्हन देखने आती थी। जहाँ बच्चे के पैदा होने पर मिरासिंने गाना गाने आती थी, आज वो आँगन कहीं खोते जा रहे।

आँगन खुशहाली की जगह थी लेकिन उसे सीमेंट की छतों ने ढँक दिया, नज़र लग गयी उसे। जब से आँगन पाटे जाने लगे तभी से रिश्तों का टूटना शुरू हुआ। भाई-भाई के बंटवारे में सबसे पहले अगर कोई क़ुर्बान होता है तो वो है आँगन। पहले उसके ही टुकड़े किये जाते हैं। संयुक्त परिवारों से टूटने के बाद परिवार छोटे होते गए और घरों की जरूरत भी छोटी हो गयी। जिसमें आँगन को कोई जगह नहीं मिली और अब घर बिन आँगन के हो गए।