दोस्तों के नाम एक खुला खत
जैसे जैसे दुनिया नाम निहाद तरक्की के जीने पर चढ़ रही है वैसे वैसे लोगों के अंदर अखलाकी गिरावट और फिक्र जवाल आता जा रहा है, चाहे वो समाजी उमूर हों या घरेलू मामलात हर तरफ धुवां धुवां नज़र आ रहा है,
एक दरिंदगी की जंजीर है जिसमे लोग जकड़े जा रहें हैं, एक आग सी है जो दुनिया में फैलती जा रही है, और सबका मकसद यही है के मुस्लिम कौम का वजूद तो रहे लेकिन ये अपने वजूद के बावजूद " बे वजूद" हो जाएं
मगर मुस्लिम हैं के तर्ज ए जिन्दगी के पीछे ऐसे भागे चले जा रहें हैं जैसे भूखे खाने पर और प्यासा पानी पर, हालांकि ये पानी नहीं बल्कि "सराब"(वो रेत जो दूर से पानी नज़र आए) है, आज लोग इस निजाम ए जिन्दगी से तंग आकर इस्लाम के साए में जगह ले रहे हैं, मगर इस कौम की खोपड़ी उलट गई है के उसी हलाकत के गार मे जा रहें हैं,
अजदावाजी ताल्लुकात को ही ले लीजिए मगरिबी तहजीब के मारे हुए लोगों के नज़दीक मां बहिन और बीवी में कुछ फर्क नहीं पाया जाता , इसी तरह कुत्ते और शौहर के दरमियान कुछ फर्क नहीं है बल्कि कई वजूहात की बिना पर कुत्ते को शौहर पर फजीलत हासिल है, और मगरिब के मारे हुए लोगों ने " मुहब्बत" के ऐसे ऐसे अंदाज इजात किए हैं के अल्लाह की पनाह !!
इस मौके पर मुझे मेरे उस्ताद का सुनाया हुआ एक शेर याद आता है के
" सिखाएं हैं मुहब्बत के नए नए अंदाज मगरिब ने,
हया पर पटकती हैं इज़्ज़तें और इस्मते फरयाद करती हैं"
मुमकिन है इस बात से किसी को इत्तेफाक ना हो मगर ये एक हकीकत है जिससे इंकार नहीं किया जा सकता ,मुझे मालूम है के ये तूल कलामी (लंबी बात ) मेरे बाज़ अहबाब पर गिरां बार साबित हो रही होगी, लेकिन ये परेशान दिल के कुछ ख्यालात हैं,
आखिर में इस शेर पर बात को खत्म करता हूं के
" उठा कर फेंक दो बाहर गली में ,
नई तहजीब के अंडे हैं गंदे"
साभार: Ata Ur Rahman
तर्जुमा : Umair Salafi Al Hindi
Blog: Islamicleaks