Thursday, June 3, 2021

लफ्ज़ " गैर मुकल्लिद" पर बहस





लफ्ज़ " गैर मुकल्लिद" पर बहस


एक नौजवान लड़का एक मुफ्ती साहब से कुछ सवाल करता है, लड़के का नाम है अहमद

अहमद: मुफ्ती साहब ! आप लोगों की ज़बान से अहले हदीस के लिए ये लफ्ज़ " गैर मुकल्लिद" (गैरों के भक्त) बार बार आता है, इसकी वजाहत चाहता हूं ??

मुफ्ती : ठीक है बताता हूं

अहमद: मुकल्लिद के माने क्या होता है ??

मुफ्ती: मुकल्लिद तकलीद करने वालों को कहते है

अहमद : तकलीद का माना क्या है ??

मुफ्ती : किसी की बात को आंख बंद कर के बिना किसी दलील के मान लेने को तकलीद कहते हैं,

अहमद : तो मुकल्लिद ( अंधभक्त) आंख बंद करके किसी गैर नबी की बात को बिना किसी दलील के मान लेता है ??

मुफ्ती : हां ! कुछ ऐसा ही समझो

अहमद : अब आप ज़रा मुझे तकलीद और मुकल्लिद की जिद (विलोम) बताएंगे ??

मुफ्ती : अरे तकलीद ना करने वाले को गैर मुकल्लिद कहते हैं जैसे के तुम हो, तुम गैर मुकल्लिद हो समझे ??

अहमद : अच्छा ! तो रात की जिद क्या है??

मुफ्ती : दिन

अहमद : और झूट की जिद ??

मुफ्ती : ये कैसे बच्चों जैसे सवाल कर रहे हो ?? क्या ये भी बताना पड़ेगा कि झूट की जिद सच है ?

अहमद : मुफ्ती साहब! जब रात की जिद "गैर रात" नहीं बल्कि दिन होता है और झूट की जिद " गैर झूट " नहीं बल्कि सच होगा है, तो मुकल्लिद की जिद "गैर मुकल्लिद" नहीं बल्कि मुहक्किक होना चाहिए ,

क्यूंकि मुकल्लिद गैर नबी की बात को बिना किसी दलील आंख बंद करके मानता है और मुहक्किक गैर नबी की बात को तहकीक के बाद मानता है ?? है ना ??

मुफ्ती: तुम उलेमा के गुस्ताख़ हो, बद जन हो,
 

साभार: Umair Salafi Al Hindi