Monday, January 17, 2022

आज का सेकुलर मुसलमान:

 



आज का सेकुलर मुसलमान:


अपने आपको मुसलमान कहने वाले वो लोग जो दूसरे बातिल धर्मों की तरफ कुछ ज्यादा ही (यानी उनके धार्मिक रस्म वा रिवाज और इबादात तक में किसी तौर पर भी शिरकत करना ) लचकपन और नरम रवैया रखते हैं वह दो हाल से खाली नहीं है,

पहला : वह सिर्फ नाम के मुसलमान हैं और सेकुलरिज्म के नाम पर अक्सरियत को खुश करने के लिए करते हैं ये लोग अपने आपको पक्का सेकुलर साबित करने के लिए कभी इस्लाम के बाज अहकाम का मज़ाक भी उड़ाते रहते हैं, और उनमें से बाज तो कभी इंटर रिलीजन के नाम पर काफिराह औरत को उसके अपने शराइत के साथ अपना रफीक ए हयात भी बना लेते हैं, और कुछ तो उस काफिरह को खुश करने के लिए घर में उसके पसंद का मंदिर भी बना देते हैं, और ये लोग अकबर को अपना इमाम ए आज़म तसव्वुर करते हैं, और कुछ तो " Inter Faith " और " Co- Existance " के नाम पर अपने बच्चों का नाम गैर इस्लामी रख कर Non Muslimon से खूब वाहवाही बटोरते हैं, उन्हे इसका शाउर भी नहीं रहता के वह कौम रसूल हाशमी की तरकीब का सत्यानाश कर रहे होते हैं, इनमे अक्सर आप Celebraties का नाम पायेंगे जो खेल, फिल्म और सियासत की दुनिया से जुड़े हैं,

दूसरा: ये वो सेकुलर मुसलमान हैं जो एहसास कमतरी का शिकार हैं, गैरों का रूवाब और कमजोर ईमानी का साया कभी उनका पीछा नहीं छोड़ता ,कभी कभी तो ईमान का आखिरी दर्जा भी उनसे पनाह मांगने लगता है, क्योंकि ये जब कभी उन्हें अपनी ईमानी कुव्वत के मुजाहिरे का वक्त पड़ता है तो वह आखिरी सीढ़ी पर भी अपनी बका को सेकुलरिज्म के खिलाफ समझने लगते हैं और Intolerance का खौफ दिलाकर Peaceful Co Existance के नाम पर सरीह कुफरिया वा शिरकिया अमाल को भी एक मामूली मरी हुई मक्खी का चढ़ावा समझ कर उसे Thamsup Coldrink की तरह अपने इस्लाम का हाजमा तसव्वुर करते हैं Discrimination और Cultural Clash का हव्वा खड़ा करके अपने हम मजहबों को भी दीनी वुसत कल्बी की दावत देना शुरू कर देते हैं,

इसी तरह Mutual Understanding ، Multi-Religious society और Mutual Respect के नाम पर अपना सबकुछ लुटा चुके होते हैं फिर भी उन्हें सेकंड बल्कि थर्ड क्लास जैसे लकब के अलावा कुछ नहीं हासिल होता , क्योंकि सिर्फ इस्लामी नाम ही पिछड़ा हुआ, ओबीसी बना दिए जाने के लिए काफी है,

मैं नहीं समझता के मुग़ल सलातीन से भी ज्यादा कोई हिंदुस्तान में सेक्युलर रहा होगा लेकिन आज भारत के हुक्मरान ए वक्त उन्हें गद्दार, लुटेरा और कातिल के इलावा क्या क्या समझ रहे हैं और उनसे जुड़ी मुल्की तहजीबी विरासत के साथ क्या क्या सुलूक कर रहें हैं ये सब हमसे ज्यादा खुले हुए सेकुलर हजरात जानते होंगे , नेज उन्हे ये भी पता होगा के महज़ इंसानी हमदर्दी के नाम पर किसी इस्लामी फैसले की ताईद कर देने से ऐसे ही खुले दिल के सेकुलर लोगों को अक्सर गद्दार ए वतन होने का परवाना दिया जाता है, फिर भी मसाकीन ए वक्त और इस्लामी नुमा सेकुलर होश के नाखुन नहीं लेते,

उनमें अक्सर आपको राफिज़ी,तहरीकी और उनके हमनवा मिल जायेंगे जो कभी बिरादराने वतन के नाम पर मंदिर साफ करते दिखाई देंगे तो कुछ मंदिर के नाम पर तोहफे देते नज़र आएंगे , तो उन्ही में कुछ लोग गंगा जमुना तहजीब के नाम पर कभी दिवाली की मिठाई खाते और कभी काफिरों के मज़हबी रसूमात में शरीक होते नज़र आएंगे,

ये सेक्युलर हजरात अपनी वसी सोच वा फिक्र के एतबार से रवादारी के मुख्तलिफ तजुर्बात भी पेश करते रहते हैं और ये नहीं जानते के एक पक्का मोमिन भी तकसीरियत के बीच रहकर पूरे वकार, भाईचारे और तमाम हमदर्दियों के साथ अपनी मुकम्मल इस्लामी शिनाख्त को बचाकर जीता है और जीता रहेगा , जनाब शौकत परवेज का तजुर्बा इसके लिए काफी है,

ये याद रहे के ऐसे ही लोगों की वजह से इस्लाम का दिफा करने के लिए अल्लाह ताला हमेशा एक जमात बाकी रखेगा जो बिला खौफ वा मलामत लोगों के सामने सीना सपर रहेंगे और इस्लाम के एक एक जोड़ को कभी भी तहस नहस नहीं होने देंगे ,

अल्लाह हमें पक्का वा सच्चा बा अमल मुसलमान बनाए और हक बात कहने और सुनने की तौफीक बख्शे...आमीन
साभार : डॉक्टर अजमल मंजूर मदनी
तर्जुमा: Umair Salafi Al Hindi
Blog: islamicleaks