Saturday, January 16, 2021

AURAT KI IZZAT

 



"औरत की इज्ज़त"


अशफाक़ अहमद मरहूम फरमाते हैं कि मैं अपनी अहलिया बानो के साथ इंग्लैंड के एक पार्क में बैठा हुआ था कि वहां कुछ तौहिदी नौजवान चहल क़दमी करते हुए पार्क में आए,
इतने में मग़रिब का वक़्त हुआ तो उन्होंने वहीं जमाअत शुरू कर दी _

उन नौजवानों को नमाज़ पढ़ता देख कुछ नौजवान लड़कियों का एक ग्रुप उनके पास पहुंचा और नमाज़ मुकम्मल होने का इंतजार करने लगीं _

मैने अपनी अहलिया से कहा आओ देखते हैं कि उनके दरमियान क्या बात होती है _

मरहूम फरमाते हैं कि हम दोनों मियां बीवी वहां चले गए और नमाज़ खत्म होने का इंतजार करने लगे _

नमाज़ खत्म होते ही उनमें से एक लड़की ने आगे बढ़ कर जमाअत करवाने वाले नौजवान से पूछा कि क्या तुम्हें इंग्लिश आती है?

तो नौजवान ने कहा कि जी हां आती है _

तो लड़की ने सवाल किया कि तुमने अभी यह क्या अमल किया?

नौजवान ने बताया कि हमने अपने रब की इबादत की है _

तो लड़की ने पूछा आज तो इतवार नहीं है तो आज क्यों की?

तो नौजवान ने उसे बताया कि यह हम रोज़ दिन में पांच बार यह अमल करते हैं, तो लड़की ने हैरत से पूछा कि फिर बाक़ी काम कैसे करते हो तुम?

तो उस नौजवान ने उसे मुकम्मल तरीक़ा से पूरी बात समझाई _

बात खत्म होने के बाद लड़की ने मुसाफह के लिए हाथ बढ़ाया तो नौजवान ने कहा कि मआज़रत के साथ मैं आपको छु नहीं सकता, यह हाथ मेरी बीवी की अमानत है और यह सिर्फ उसे ही छु सकता है _

यह सुनकर वह लड़की ज़मीन पर लेट गई और फूट फूट कर रोने लगी और रोते हुए बोली कि ऐ काश! यूरोप का नौजवान भी इसी तरह होता तो आज हम भी कितनी खुश होतीं _

फिर बोली कि वाह कितनी ही खुश नसीब है वह लड़की जिसके तुम शौहर हो _

यह कहकर वह लड़की वहां से चली गई _

अशफाक़ मरहूम फरमाते हैं कि मैने अपनी अहलिया से कहा कि "बानो! आज यह नौजवान अपने अमल से वह तबलीग कर गया जो कई किताबें लिखने से भी नहीं होती _"

बेशक इज्ज़त और सर बुलंदी इस्लाम में ही है _
Syed Abdul Mujeeb