मुझे ये दुनिया क्या समझती है ??
हूं कोई मोम की गुड़िया।
या कोई फूल नाज़ुक सा।
कोई आसान सी भाषा हूं।
या मदारी का तमाशा हूं।
सामान ए दिल्लगी हूं
या शोला फुलझड़ी हूं।
मुझे दुनिया क्या समझती है ??
अगर ये सब समझती है तो।
ये गलतफहमी है उसकी।
नहीं हूं मैं मोम की गुड़िया ,ना ही फूल नाज़ुक सा।
बहुत अनजान सी भाषा हूं, ना बेजान सा लाशा हूं।
अगर शोला समझती है, तो जलाकर राख कर दूंगी।
ज़बान से अगर लफ्ज़ बोलूंगी तो छलनी कर दूंगी,
मुझे ये दुनिया क्या समझती है ??
मैं हूं सीप का मोटी।
जो सदियों बाद बनता है।
नहीं हूं आम सी लड़की।
शौक़ परवाज़ है मेरा।
कलम पर हाथ है मेरा।
अगर चाहूं कलम से , मैं उसका सर कलम कर दूं,
मुझे ये दुनिया क्या समझती है ??
तू फिर से सोच ले शायद।
साभार: बहन सबा युसुफजई
ब्लॉग: islamicleaks.com