एक सबक आमीज़ वाकया
फुजैल बिन अयाज़ रहमतुल्लाह फरमाते हैं
मैंने सब्र एक छोटे बच्चे से सीखा, एक बात का वाकया है के मैं मस्जिद गया तो क्या देखता हूं कि मस्जिद के करीब एक औरत अपने घर के अंदर अपने बच्चे को मार रही है और वह बच्चा चीख वा चिल्ला रहा है, बिलाअखिर तंग आकर वह बच्चा दरवाज़ा खोलकर बाहर की तरफ भाग निकला, उसके बाद मां ने भी अन्दर से दरवाज़ा बंद कर लिया,
फूजैल रहमतुल्लाह फरमाते हैं :-" कुछ देर बाद जब मैं वापस हुआ तो फिर देखता हूं के वही बच्चा थोड़ी देर रोने के बाद दरवाज़े की चौखट पर सो गया है गोया वह इस तरह करके अपनी मां से दरवाज़ा खोलने के लिए मिन्नत वा समाजत कर रहा हो,
चुनांचे बच्चे को इस हालत में देखकर मां का दिल भर आया और दरवाज़ा खोल दिया "
ये वाकया देखकर फ़ुजैल रहमतुल्लाह रोने लगे यहां तक के उनकी दाढ़ी आंसुओं से तर हो गई और ज़ुबान से बेसाख्ता बोल पड़े
" सुभानल्लाह ! अगर बन्दा अल्लाह के दरवाज़े पर इसी तरह सब्र करके डट जाए तो अल्लाह ताला ज़रूर उसके लिए अपना दरवाज़ा खोल देगा "
हज़रत अबू दर्दा राजियल्लाह ताला अन्हू फरमाते हैं:-
" अल्लाह की बारगाह में कसरत से दुआ करो क्यूंकि जो शख्स बकसरत दरवाज़ा खटखटायेगा एक ना एक दिन वह दरवाज़ा ज़रूर उसके लिए खुलेगा "
(मुसन्निफ इब्न अबी शायबा 6/22)